उत्तरकाशी के सिलक्यारा में सुरंग में फंसे 40 श्रमिकों को पांच दिन बाद भी बाहर नहीं निकाला जा सका है। ऐसे में उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर भी चुनौतियां बढ़ रही हैं। श्रमिकों की मानसिक स्थिति पर इस हादसे का असर पड़ेगा।

विशेषज्ञों के अनुसार, लंबे समय तक भीतर फंसे रहने और भविष्य की अनिश्चितता श्रमिकों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। इससे उनमें अवसाद व निराशा की भावना पैदा हो सकती है। यह स्थिति उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ सकती है। वह मानसिक विक्षोभ (साइकोटिक ब्रेकडाउन) का भी शिकार हो सकते हैं।

न्यूरो साइकोलॉजिस्ट डा. सोना कौशल गुप्ता के अनुसार, सुरंग में फंसे होने के कारण उत्पन्न शारीरिक दिक्कतों व स्थिति की अनिश्चितता के कारण श्रमिकों में तनाव और चिंता बढ़ना लाजमी है। एक सीमित स्थान पर लंबे वक्त तक फंसे रहने के कारण भय और घबराहट पैदा हो सकती है। अतिरिक्त कारक जैसे अंधेरा, वेंटिलेशन की कमी आदि के कारण यह भावनात्मक प्रतिक्रिया तीव्र हो सकती है।

बाहरी दुनिया से कटाव व्यक्ति की मनोदशा पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। डा. सोना कौशल गुप्ता का कहना है कि मनोविज्ञानी संकट शारीरिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है। वह मानती हैं कि श्रमिकों के बीच एकजुटता, उनका मनोबल बढ़ाने के लिए बाहर से स्पष्ट व निरंतर संवाद मनोविज्ञानी प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

सोना कौशल गुप्ता कहती हैं कि श्रमिकों के बाहर निकलने के बाद वह पोस्ट ट्रौमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) का भी शिकार हो सकते हैं। ऐसे में शारीरिक के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य का भी आकलन करना होगा। मनोविज्ञानी प्राथमिक चिकित्सा के साथ ही उन्हें दीर्घकालिक देखभाल की भी जरूरत पड़ सकती है।

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