गढ़वाल नरेशों के प्रधानमंत्री, रहे गढ़ चाणक्य के नाम से मशहूर वीर पुरिया नैथानी की आदमकद प्रतिमा को आम लोगों के दर्शनार्थ खोल दिया गया है। पौड़ी जिले के नैथाणा गांव में रविवार को हुए समारोह के बाद पुरिया नैथानी की अश्वारोही प्रतिमा और स्मार्क की फोटो गैलरी का लोकार्पण कर दिया गया। इस दौरान स्थानीय लोगों ने पुरिया स्मारक परिसर में बनी फ़ोटो गैलरी में भी पुरिया नैथानी से जुड़े चित्रों का अवलोकन किया गया। चित्रों के जरिये पुरिया नैथानी की चतुरता, वीरता, शौर्य व पराक्रम को दर्शाया गया। नैथाना गांव में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में प्रवासी, मनियारस्यूँ पट्टी के दर्जनों गांवों के ग्रामीण व अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने शिरकत की।
इस दौरान महिला मंगल दल व अनेक स्कूलों के छात्र-छात्राओं द्वारा आकर्षक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दी गईं। इस मौके पर द्वारीखाल ब्लॉक प्रमुख महेंद्र सिंह राणा ने कहा कि पुरिया नैथानी सेवा ट्रस्ट की पहल पर उनके पैतृक गांव में मूर्ति स्थापना एक ऐतिहासिक कदम है। इससे वर्तमान व आने वाली पीढ़ियों को पुरिया नैथानी की जीवनी से प्रेरणा मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि इससे रिवर्स पलायन की दिशा में भी युवा पीढ़ी के कदम बढ़ेंगे।
मूर्ति व स्मारक निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले ट्रस्ट के निर्मल नैथानी ने बताया कि स्मारक के निर्माण में लंदन में रहने वाले गांव के डॉ सतीश नैथानी द्वारा प्रदत्त संसाधनों से ट्रस्ट को प्रेरणा व संबल मिला। इसी को देखते हुए आज डॉ सतीश नैथानी के जन्मोत्सव पर इस मूर्ति को आम जन के लिए समर्पित किया गया। उन्होंने बताया कि मूर्ति स्थापना पहले चरण का कार्य था। पुरिया नैथानी स्मारक को आने वाले समय मे विस्तार देते हुए अनेक कार्य प्रस्तवित हैं जिनमे कुछ का निर्माण कार्य गतिमान है। आने वाले समय में इस स्थान पर एक भव्य व विहंगम स्मारक मूर्त रूप ले लेगा। जो ऐतिहासिक पर्यटन व लोक इतिहास के प्रति जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए एक नया डेस्टिनेशन होगा।
कार्यक्रम में डॉ सतीश नैथानी, पूर्व प्रधान राकेश नैथानी , प्रधान महाकान्त नैथानी, गिरीश नैथानी, कर्नल आनंद थपलियाल,नवीन नैथानी,अरुण नैथानी,नीरज नैथानी,मोबी नैथानी, के साथ ही बड़ी संख्या में पंचायत प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य व क्षेत्रीय महिला मंगल दल की महिलाएं मौजूद थीं। इससे पूर्व विधायक पौड़ी राजकुमार पोरी ने आदर्श चुनाव आचार संहिता लगने से पूर्व इसका विधिवत लोकार्पण कर दिया गया था।
कार्यक्रम में डॉ सतीश नैथानी, पूर्व प्रधान राकेश नैथानी , प्रधान महाकान्त नैथानी, गिरीश नैथानी, कर्नल आनंद थपलियाल,पूर्व प्रधानाचार्य मनोहर सिंह रावत, जगमोहन डांगी के साथ ही बड़ी संख्या में पंचायत प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य व क्षेत्रीय महिला मंगल दल की महिलाएं मौजूद थीं। कार्यक्रम का संचालन हेमंत नैथानी ने किया। इससे पूर्व राइका कांसखेत के छात्र छात्राओं द्वारा शिव स्रोत पर आधारित नृत्य नाटिका ने समां बांध दिया
पुरिया नैथानी
पुरिया नैथानी जिन्हें इतिहास में गढ़वाल का चाणक्य भी कहा गया है और पहाड़ का नाना फडनवीस भी. गढ़वाल का इतिहास टटोलने वाले तो यहां तक कहते हैं कि अगर पुरिया नैथानी न होते, तो शायद पंवार वंशीय राजाओं का इतिहास वक्त के बहुत पहले ही सिमट चुका होता। उनका पूरा नाम पूरणमल नैथानी था। जनपद गढ़वाल की मनियारस्यूं पट्टी के नैथाणा गांव में 22 अगस्त 1648 को गेंदामल नैथानी के घर जन्मे पूरणमल को प्यार से पुरिया कहते थे। आगे चलकर वे ‘वीर पुरिया’ नाम से ही विख्यात हुए।
गढ़वाल नरेश महाराजा पृथ्वी शाह के दरबार के दीवान शंकर डोभाल ने पुरिया के असाधारण भविष्य की बात कही पुरिया को शिक्षा दीक्षा के लिए अपने साथ ले गए। शंकर डोभाल का महाराज पर अच्छा प्रभाव था तो उन्होंने पुरिया की शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध राजकुमारों के साथ राजकीय पाठशाला में करवा दिया। पढ़ाई के साथ साथ घुड़सवारी और शस्त्र-संचालन का भी पुरिया ने बेहतर ढंग से अभ्यास किया। इस तरह बाल पुरिया जब किशोरावस्था में आए तो छह शास्त्रों, 18 पुराणों और यंत्र-मंत्रो में दक्षता लेने के साथ अनेक श्स्त्र संचालन, अश्व संचालन में पारंगत हो गए।
17 साल की उम्र में ही पुरिया को राज दरबार में नियुक्त कर लिया गया था। उनके कौशल को देखते हुए उन्हें शाही अस्तबल का प्रधान बनाया गया।
जजिया कर से मुक्ति दिलाई
पुरिया नैथानी 1680 में दिल्ली यात्रा पर गए। औरंगज़ेब ने उन दिनों पूरे देश के हिंदुओं पर जज़िया कर लगा दिया था। गढ़वाल के लिए ये कर चुकाना बहुत भारी पड़ रहा था। जनता से टैक्स के रूप में अतिरिक्त अनाज लेकर दिल्ली भेजा जाने लगा था और इससे गढ़वाल के आर्थिक हालात और भी बिगड़ रहे थे। ऐसे में कूटनीतिज्ञ पुरिया नैथानी को एक बार फिर से दिल्ली भेजा गया। वहां एक दिलचस्प वाक़या हुआ जिसके बाद औरंगज़ेब ने गढ़वाल रियासत को जज़िया कर से मुक्त कर दिया। पुरिया नैथानी ने गढ़वाल की भौगिलिक विषमता का इतनी खूबसूरती से व्याख्या की कि औरंगजेब ने जजिया कर माफ करने का ऐलान कर दिया।
पुरिया के असाधारण राजनैतिक कौशल का परिचय तब भी मिलता हैं जब साल 1709 में कुमाऊँ के राजा जगतचन्द ने एक विशाल सेना ले कर अचानक से गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया। इस वक्त तक महाराजा मेदिनी शाह का देहांत हो चुका था और उनके बेटे फ़तेह शाह राजा बन चुके थे। कुमाऊँ से अचानक हुए इस आक्रमण के लिए गढ़वाल की सेना लिए तैयार नहीं थी। राजा जगतचंद की सेना आगे बढ़ते हुए राजधानी श्रीनगर तक पहुंच चुकी थी। ऐसे में पुरिया ने राजशाही को बचाने के लिये महाराजा फतेहशाह को वहाँ से तुरंत देहरादून के लिए रवाना किया। क्योंकि कुमाऊं की सेना बहुत विशाल थी इसलिए उस समय उससे लड़ पाना और जीत पाना बहुत मुश्किल था। ऐसे में पुरिया नैथानी ने कूटनीति से काम लिया। उन्होंने राजा जगतचन्द की सेना विरोध नहीं किया बल्कि उनका अतिथि सत्कार किया। कुमाऊं नरेश जगत चन्द पुरिया से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने पुरिया को ब्राह्मण मानकर श्रीनगर दान में दे दिया और वहां से वापस लौट गए।
इतिहास में गढ़ राज्य की एक और महत्वपूर्ण घटना दर्ज है। 1715 में राजा फतेहशाह की मृत्यु के बाद उनके बेटे दलीप शाह गद्दी पर बैठे। लेकिन नौ महीने के अन्दर ही उनकी भी मृत्यु हो गई। दलीप शाह की मौत के समय उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था लेकिन उनकी पत्नी गर्भवती थी। ऐसे में मंत्रियों के बीच गम्भीर मतभेद होने लगे और गृह-युद्ध जैसी स्थिति बन पड़ी। तब पुरिया नैथानी ने सभी के बीच समझौता करवाया और तय हुआ कि राज्याधिकारी का जन्म होने तक दलीप शाह के छोटे भाई उपेन्द्र शाह राज-कार्य चलाएँगे। आठ महीने बाद रानी ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका उसी वक्त राजतिलक कर दिया गया। लेकिन कुछ दरबारी नवजात राजा की हत्या से सत्ता हासिल करने का प्लान बना रहे थे।
पुरिया नैथानी ने तब नवजात प्रदीप शाह को सबसे बचाकर अपने गांव नैथाना भेज दिया।उन्होंने लंबे समय तक राजकुमार प्रदीप को वहीं सुरक्षित रखा और खतरा होने पर कई बार उन्हें रानीगढ़ या अदवाणी के जंगल में भी छिपाए रखा। राज्य को हथियाने का सपना देखने वालों में पांच भाई कठैत सबसे प्रमुख थे। उन्होंने मंत्री शंकर डोभाल की भी हत्या कर दी थी और वे राजकुमार के साथ ही पुरिया नैथानी की हत्या की योजना बना रहे थे। लेकिन पुरिया नैथानी ने न सिर्फ़ राजकुमार को वर्षों तक इनसे छिपाए रखा बल्कि अपनी सूझ-बूझ से कठैत भाइयों में ही आपसी फूट पैदा कर दी जिसके चलते वो आपस में ही लड़कर मारे गए